नाटक मंचन ( सीखने का क्षेत्र )

नाट्य और नृत्य, दृश्य काव्य के ये दो भेद हैं। नट-नटी द्वारा किसी अवस्थाविशेष की अनुकृति नाट्य है - 'नाट्यते अभिनयत्वेन रूप्यते- इति नाट्यम्'। ताल और लय की संगति से अनुबद्ध अनुकृत को नृत्य कहते हैं। ये दोनों ही अभिनय के विषय हैं और ललित कला के अंतर्गत माने जाते हैं।

छात्रों में रचनात्मकता, नवीन शिक्षण, आलोचनात्मक सोच और तार्किक तर्क को प्रोत्साहित करने के लिए , नाटक और कलाएँ शिक्षा प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नाटक में भाग लेना एवं नाटक देखना दोनों ही क्रियायें बच्चों में आलोचनात्मक चिंतन एवं उनके सौंदर्य बोध को बढ़ाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नाट्य शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 

















Comments

Popular posts from this blog

विराम चिह्न गतिविधि

विद्यालय में पुनः स्वागत है